इंसानों की तो एक फितरत है,, इनकी सीरत नहीं बस एक सूरत है,, पर सच बतलाना मुझको तुम इंसान ही हो ना या बस पत्थर की कोई मूरत हो।। माना रहते हो ऊंचे-ऊंचे महलों में,, और घमंड पैसों का रखते हो,, तुम हो तो एक इंसान ही ना या हो कोई पत्थर की मूरत।। जुबाने इनकी मिश्री जैसी मीठी,, और बोली रखते है कोयल जैसी सुरीली,, पर दिलो में नफरतें और नियत में खोट रखते है ये,, पर एक सच मै बतलाऊं की एक अच्छे इंसान की,, ज़िंदगी इन जैसे इंसानों के एक msg की मोहताज नहीं,, पर सच बताना तुम सब इंसान ही हो ना या सच में बस एक पत्थर की मूरत ही हो।। ©Sejal (Navi) पत्थर की मूरत.....