गिरती बर्फ के परदे और शरमाई सी तुम दिसम्बर में अलाव की परछाई सी तुम लोग जी रहे हैं तहजीबों के सायों में हर दायरे तोड़ती मगर अंगड़ाई सी तुम हर रोज लगाता हूँ हंसकर तुझे गले शोर में मुस्काती हुई तनहाई सी तुम बहती हो रगों से धड़कनों तलक मुझमें आधा हूँ मैं हो दो चौथाई सी तुम हो जाती हो अक्सर मेरी औकात से बाहर खाली हाथ लौटाती मुझे महँगाई सी तुम कभी बढ़ती ही नहीं इशारों के आगे मोहब्बत में गुम फिर भी कुछ घबराई सी तुम.. ©KaushalAlmora #दिसम्बरwithkaushalalmora #तुम #yqdidi #yqbaba #life #love #poetry #shayari