जाड़े में खिलती धुप जैसा वो, तपती गर्मी में छाँव जैसा वो, प्यासी धरती पर गिरती बारिश की बूँद जैसा वो.. वो जो घाव भी दे और असर मरहम जैसा वो, है अजनबी फिर भी अपनों जैसा वो, खुली आँखों से देखा सपने जैसा वो, एक दोस्त, एक रहगुज़र, एक भरोसे पे टिके रिश्ते जैसा वो.. कभी नादान, कभी मासूम, कभी शरारती बच्चे जैसा वो, कभी तूफ़ान, कभी शांत सी गहरी रात जैसा वो.. कभी सुलझा हुआ तो कभी उलझे से किसी सवाल जैसा वो, कभी अपनेपन का एहसास करवाने वाला, कभी बेगाना कर जाने वाला वो.. उसे खुली किताब कहूँ, या कोई गहरा राज़ कहूँ, बस आँखें जो बंद करूँ तो एक प्यारी सी मुस्कान जैसा वो.... #वो #OneOfMyFavoriteWritings जाड़े में खिलती धुप जैसा वो, तपती गर्मी में छाँव जैसा वो, प्यासी धरती पर गिरती बारिश की बूँद जैसा वो.. वो जो घाव भी दे और असर मरहम जैसा वो, है अजनबी फिर भी अपनों जैसा वो,