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तेरी प्रतिच्छाया मेरी मनोभूमि में प्रतीति बनके स्त

तेरी प्रतिच्छाया मेरी मनोभूमि में प्रतीति बनके स्तरण रहती, 
पार्थक्य-दशा सारूप्यता से, लग-प्रसंग की प्रतिप्रत्ति करती !

©Viraaj Sisodiya
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