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एक मरघट हैं मेरे अंदर, जहां चिता जलती रहती हैं, मे

एक मरघट हैं मेरे अंदर,
जहां चिता जलती रहती हैं,
मेरे कुछ स्वपनों की,
कुछ स्मृतियों की,
कुछ रिश्तों को बांधे रखनें वाली 
उन कच्ची डोरियों की,
और यह निरंतर जलती रहती हैं,
यही सब चुभते हैं मेरे कपाल में,
मैं इन्हें समय पर चिता में फैंक देता हुं,
ताकी पीड़ा कम हो,
जला देता हुं सबको,
और कभी कभी धधक जाती हैं चिता,
जब कुछ भारी जलावन पड़ता हैं,
लेकिन अंत में सब शांत चित,
बचती हैं तो केवल राख,
जिससें ईंटे बना लेता हुं,
दीवार में चुननें के लिऐ,
जो कपाल के आसपास खड़ी हैं,
ताकी अगली बार यह चुभनें को आऐं
तो दीवार सें टकरा कर
मरघट की चिता में गिरे 
और भस्म हो जाऐ,
और मुझे पीड़ा ना हो, मरघट,
एक मरघट हैं मेरे अंदर,
जहां चिता जलती रहती हैं,
मेरे कुछ स्वपनों की,
कुछ स्मृतियों की,
कुछ रिश्तों को बांधे रखनें वाली 
उन कच्ची डोरियों की,
और यह निरंतर जलती रहती हैं,
यही सब चुभते हैं मेरे कपाल में,
मैं इन्हें समय पर चिता में फैंक देता हुं,
ताकी पीड़ा कम हो,
जला देता हुं सबको,
और कभी कभी धधक जाती हैं चिता,
जब कुछ भारी जलावन पड़ता हैं,
लेकिन अंत में सब शांत चित,
बचती हैं तो केवल राख,
जिससें ईंटे बना लेता हुं,
दीवार में चुननें के लिऐ,
जो कपाल के आसपास खड़ी हैं,
ताकी अगली बार यह चुभनें को आऐं
तो दीवार सें टकरा कर
मरघट की चिता में गिरे 
और भस्म हो जाऐ,
और मुझे पीड़ा ना हो, मरघट,
manishnagar2029

Manish Nagar

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मरघट, #विचार