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अभी ज़िंदगी को पुकारा नहीं है। जवां हसरतों से निख

अभी ज़िंदगी को पुकारा नहीं है। 
जवां हसरतों से निखारा नहीं है। 

कि जां वार देंगे उसी नाज़नीं पर 
मुहब्बत से जिसने निहारा नहीं है। 

जताते नहीं हक़ किसी गै़र पर हम 
तुम्हारा है जो वो हमारा नहीं है। 

अदावत बनेगी न बल ज़िंदगी का 
मुहब्बत सा कोई सहारा नहीं है। 

नहीं मिलती मंज़िल कोई ग़म न करना
कि जीवन नदी का किनारा नहीं है। 

कभी एक पत्ता न हिलता जहां में 
अगर उस ख़ुदा का इशारा नहीं है। 

सताए किसी बे नवा को जो 'मीरा' 
ज़माना हमें वो गवारा नहीं है। #निहारा नहीं है😊
अभी ज़िंदगी को पुकारा नहीं है। 
जवां हसरतों से निखारा नहीं है। 

कि जां वार देंगे उसी नाज़नीं पर 
मुहब्बत से जिसने निहारा नहीं है। 

जताते नहीं हक़ किसी गै़र पर हम 
तुम्हारा है जो वो हमारा नहीं है। 

अदावत बनेगी न बल ज़िंदगी का 
मुहब्बत सा कोई सहारा नहीं है। 

नहीं मिलती मंज़िल कोई ग़म न करना
कि जीवन नदी का किनारा नहीं है। 

कभी एक पत्ता न हिलता जहां में 
अगर उस ख़ुदा का इशारा नहीं है। 

सताए किसी बे नवा को जो 'मीरा' 
ज़माना हमें वो गवारा नहीं है। #निहारा नहीं है😊