रावण कभी अकेला पैदा नहीं होता। उसके सारे नाते-रिश्तेदार भी साथ ही पैदा होते हैं ताकि साधारण व्यक्ति भी लंका से परिचित हो सके। व्यक्ति का सम्पूर्ण जीवन कामनापूर्ति में ही व्यस्त रहता है। उसी में व्यक्ति अपनी सामर्थ्य का अनुभव करता है। कामना पूर्ति के कारण ही नई कामना भी पैदा होने लगती है। व्यक्ति के स्वभाव के अनुकूल ही उसकी वाणी और ज्ञान हो जाता है। हर सम्बन्ध के साथ व्यक्ति निजी पहचान बनाना चाहता है। अत: मूल में व्यक्ति एक होते हुए भी दिन-रात उसकी छाया बदलती रहती है। ये छाया ही आवरण बनकर बाहरी जीवन में उलझाए रहती हैं। तो उसे न "राम दिखेगा न सीता " सभी को अपने मनगढ़ंत पात्र मानकर व्यवहार करने लगता है।🌺💕👴🙋 #parvej ahmad जी आपके विचार जानना चाहूंगा !