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सुन री सखी मोरी: कौन को सुनाऊं दुबिधा मोरी; कोनसे

सुन री सखी मोरी:
कौन को सुनाऊं दुबिधा मोरी;
कोनसे कहूं हृदय की पीर री।
जोगन भई जोगिया की;
अलबेली हुई श्याम पिया की।
मन न भाए मोहे रंग कोई;
जब से रंग गई चुनरी श्याम रंग मोरी।
रात्रि अंखियां बरसे मोर प्रियतम की याद में;
न जाने कौन देश में बैठो है वो देख मोहे इस हालात में।
जोग रमाया जोगन बनाया; 
अब न जाने गलियन में वो वापस न आया।
प्रेम का बन्धन बांध चितवन में वही समाया मोर री।
ए री सखी मोहे मन न भाए कोई रंग री।

                             —khushboo Mishra ✍️ सुन री सखी मोरी:
कौन को सुनाऊं दुबिधा मोरी;
कोनसे कहूं हृदय की पीर री।
जोगन भई जोगिया की;
अलबेली हुई श्याम पिया की।
मन न भाए मोहे रंग कोई;
जब से रंग गई चुनरी श्याम रंग मोरी।
रात्रि अंखियां बरसे मोर प्रियतम की याद में;
सुन री सखी मोरी:
कौन को सुनाऊं दुबिधा मोरी;
कोनसे कहूं हृदय की पीर री।
जोगन भई जोगिया की;
अलबेली हुई श्याम पिया की।
मन न भाए मोहे रंग कोई;
जब से रंग गई चुनरी श्याम रंग मोरी।
रात्रि अंखियां बरसे मोर प्रियतम की याद में;
न जाने कौन देश में बैठो है वो देख मोहे इस हालात में।
जोग रमाया जोगन बनाया; 
अब न जाने गलियन में वो वापस न आया।
प्रेम का बन्धन बांध चितवन में वही समाया मोर री।
ए री सखी मोहे मन न भाए कोई रंग री।

                             —khushboo Mishra ✍️ सुन री सखी मोरी:
कौन को सुनाऊं दुबिधा मोरी;
कोनसे कहूं हृदय की पीर री।
जोगन भई जोगिया की;
अलबेली हुई श्याम पिया की।
मन न भाए मोहे रंग कोई;
जब से रंग गई चुनरी श्याम रंग मोरी।
रात्रि अंखियां बरसे मोर प्रियतम की याद में;

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