देसी साइकिल और उसके डंडे में एक छोटी सीट होती थी। ये उन दिनों की बात है जब बातें खतों और संदेशों में होती थीं। छोटी सीट पर मैं और मेरे पीछे बब्बा जी। 🥰 बड़ा खुश होता था इस भ्रम में... कि मैं ही इस साइकिल को दौड़ा रहा हूं... हम रोज़ खेतों की सैर करने निकलते थे ये उन दिनों की बात है जब खेतों में इक्का दुक्का बैल भी हुआ करते थे। चारों तरफ हरियाली बीच बीच में छोटे बड़े पोखर होते थे हम घंटों खेत की मेड़ों में पैदल घूमते थे। यहां मैं उनकी उंगली थामे उनके पीछे पीछे चलता था छोटे से बच्चे को राह के कांटों को पहचानना और उनसे बचना जो नहीं आता था। एक दोस्त बनकर सब कुछ सिखा गए, बिना डांट डपट के तालीम ऊंची पढ़ा गए। सबके गुरुबाबा और मेरे दद्दा। 😊♥️ आज भी हैं हमारे साथ मेरे प्यारे श्री हरिदास।🙏 ©Akarsh Mishra #Exploration #grandfatherlove #love #Nostalgia