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हर वख्त इंसान एक नए चेहरे ओढ़ता है, अपनी जरूरत और स

हर वख्त इंसान एक नए चेहरे ओढ़ता है,
अपनी जरूरत और सहूलियत से,
कुछ थैले में
कुछ हाँथ में,
कुछ दिमाग में और
कुछ दिल मे,
छिपा कर रखता है,
अपनी जरूरत और सहूलियत से,
हर वख्त इंसान एक नए चेहरे ओढ़ता है।

कुछ रंगों से सराबोर,
कभी भद्दा बेरंग सा,
कभी अनजान,
कभी दिल के पास,
जितने हिसाब लगा सकता है,
उतने चेहरे लेकर घूमता है,
जरूरत पड़ने पर नये चेहरे गढ़ने की कला जानता है इंसान।

©Prashant Roy
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