खुद ही खुद को चाहने लगी हूं आज कल कभी यूं ही आईने में खड़े खुद ही खुद को निहार लिया करती हूं, फ़ुरसत में कभी यूं ही बेवजह मुस्कुरा दिया करती हूं.. हा, आजकल खुद ही खुद को चाहने लगी हूं!! यूं तो बहुतो ने बार बार ये दिल दुखाया बिठाके पलको पर, अपने ही नज़रों से मुझे गिराया! पर फिर भी मैने ही उनको मनाया, जो खुद ना समझा वो भी उनको मैंने है समझाया.. अब बस। इन सब से आजकल मैं थक सी गई हूं.. जिनको कुछ फर्क नहीं पड़ता, आजकल उनमें और गैरो में कुछ भी फर्क रखती नहीं हूं। मैं आज कल खुद ही खुद को चाहने लगी हूं!! कभी मैं खुद ही हंसा देती हूं खुद को तो कभी खुद ही बेफिक्र सी हंस भी लेती हूं, मैं खुद के लिए लिखती हूं आज कल खुद ही खुद को पढ़ भी लेती हूं। मैं आजकल खुद ही खुद को चाहने लगी हूं!! लगा कर सीने से जिस जिस ने घोंपा हैं पीछे से खंजर, सामने से मैं आज उनको पहचान लेती हूं.. मैं खुद ही हराती हूं खुद को खुद ही खुद को जीताने में लगी हूं.. हा, मैं आजकल खुद ही खुद को चाहने लगी हूं!! © Dikshita Sarmah #selflove #खुदसे