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तिरे साये से भी डर है मैं दुर ही सहि अभी तुझसे। ब

तिरे साये से भी डर है मैं दुर ही सहि  अभी तुझसे।
बहुत तकलीफ होती है तिरे छाये में रहने से।।
अगर मौसम सुहाना आएगा तो लौट आऊंगा।
तिरे आंखों कि काजल हूँ अश्क सँग बह भि जाऊंगा।। कवि आर डी
तिरे साये से भी डर है मैं दुर ही सहि  अभी तुझसे।
बहुत तकलीफ होती है तिरे छाये में रहने से।।
अगर मौसम सुहाना आएगा तो लौट आऊंगा।
तिरे आंखों कि काजल हूँ अश्क सँग बह भि जाऊंगा।। कवि आर डी