दम घुटता है सीने में जब आती है याद माघ महीने में पहले बादल जैसे छा जाती हो फिर बिन बरसे तरसाती हो पहले प्रेम में सब निखरते हैं फिर टूट के सब बिखरते हैं होश में आना नहीं चाहता है ये दिल सबको बहकाता है खून निकले तो जख़्म सी लगती है वरना हर चोट नज़्म सी लगती है पुराने प्रेम के जो धागे हैं उन्हें हम लफ़्ज़ों से सहलाते हैं क्या तेरा क्या मेरा है किस्मत का सब फेरा है तेरी आंखें बहुत शराबी हैं फिर बहकने में क्या खराबी है.... © trehan abhishek ♥️ Challenge-914 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें! 😊 ♥️ दो विजेता होंगे और दोनों विजेताओं की रचनाओं को रोज़ बुके (Rose Bouquet) उपहार स्वरूप दिया जाएगा। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।