तुम मुझे चाहो या ना चाहो मै तुम्हें चाहती हु तुम तो कहते थे जितना आसमान धरती को चाहता है मैं तुम्हें उतना चाहता हु तूम हर दिन निये सपनो के साथ मिलते थे फिर भी मैं बोलती तुम मुझे चाहो या न चाहो मैं तुम्हें चाहती हु तुम हर बात ऐसे ही बोलते थे पर मैं हर बात सच मानती थी तुम्हारे नजरो में मेरी क्या अहमियत हैं ये मैं जानती थी फिर भी मै तुम्हें चाहती थी तुम हर बात को खुवाबो के।तरह सजाते थे पर मैं हर बात को हक़ीक़त मानती थी तुम मुझे चाहो या ना चाहो मैं तुम्हें चाहती हु बस यही बात बताती थी ............... Dipika.......... chaht