चोट फिर दिल पे लगी है , जख्म भी गहरा हुआ है l माँ तेरी चुनर को , तेरे लालों ने फिर से रंग दिया है l जब गिरा वो इस धरा पे स्वांस अंतिम ले रहा था , चुम कर के इस ज़मीं को जय हिन्द ही वो कह रहा था l होंठों पे उसके हसी थी बाहें फैलाये हुआ था l मानो एक नन्हा सा बालक माँ से अपने लिपट रहा था l चोट फिर दिल पे लगी है , जख्म भी गहरा हुआ है l माँ तेरी चुनर को , तेरे लालों ने फिर से रंग दिया है l © राज रोशन वत्स saheed, sahadat, veer jawan