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चोट फिर दिल पे लगी है , जख्म भी गहरा हुआ है l माँ

चोट फिर दिल पे लगी है ,
जख्म भी गहरा हुआ है l
माँ तेरी चुनर को ,
तेरे लालों ने फिर से रंग दिया है l
जब गिरा वो इस धरा पे 
स्वांस अंतिम ले रहा था ,
चुम कर के इस ज़मीं को 
जय हिन्द ही वो कह रहा था l
होंठों पे उसके हसी थी 
बाहें फैलाये हुआ था l
मानो एक नन्हा सा बालक 
माँ से अपने लिपट रहा था l
चोट फिर दिल पे लगी है ,
जख्म भी गहरा हुआ है l
माँ तेरी चुनर को ,
तेरे लालों ने फिर से रंग दिया है l
© राज रोशन वत्स saheed, sahadat, veer jawan
चोट फिर दिल पे लगी है ,
जख्म भी गहरा हुआ है l
माँ तेरी चुनर को ,
तेरे लालों ने फिर से रंग दिया है l
जब गिरा वो इस धरा पे 
स्वांस अंतिम ले रहा था ,
चुम कर के इस ज़मीं को 
जय हिन्द ही वो कह रहा था l
होंठों पे उसके हसी थी 
बाहें फैलाये हुआ था l
मानो एक नन्हा सा बालक 
माँ से अपने लिपट रहा था l
चोट फिर दिल पे लगी है ,
जख्म भी गहरा हुआ है l
माँ तेरी चुनर को ,
तेरे लालों ने फिर से रंग दिया है l
© राज रोशन वत्स saheed, sahadat, veer jawan