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(लाचार मजदूर) गरीब,लाचार ,मजदूर हु में,बस मेरा ये

(लाचार मजदूर)

गरीब,लाचार ,मजदूर हु में,बस मेरा ये कसूर है।
भूखा पैदल चल रहा हूँ, अभी घर मेरा बहुत दूर है।

घर से निकला सोचा ना था,की ऐसा वक्त भी आयेगा।
रोटी के बदले फ़ोटो खीचकर, वो गरीब का मजाक बनाएगा।
पैदल ही घर को चल पड़ा, अपनो से मिलने का शरूर है।
गरीब,लाचार,मजदूर हु में,बस मेरा ये कसूर है।

जो देश छोड़कर निकल लिए,आज उनपे रहमत जारी है।
जिनका खून देश की नींव में है,आज वक्त भी उनपे भारी है।
भूख से दम ना तोडेंगे हम, साथ अपनो के मरणा मंजूर है।
गरीब,लाचार,मजदूर हु में,बस मेरा ये कसूर है।

कोई दे गया झूठी तस्सली, किसी ने अपनी रोटी शेखी है।
एक रोटी पे दो वक्त गुजारे, हमने वो गरीबी देखी है।
गरीब को मरते उसके हाल पर छोड़ा, ये दुनिया का दस्तूर है।
गरीब,लाचार,मजदूर हु में,बस मेरा ये कसूर है।

दो छोटे बच्चे गोद मे है,माँ,बहन के पैर में छाले है।
वो बच्चे भूखे रो रहे है, जो प्यार से हमने पाले है।
मरे के मुँह में घी लगाते, ये दुनिया का उसूल है।
गरीब,लाचार,मजदूर हु में,बस मेरा ये कसूर है।

कुचला पड़ा परिवार किसी का,किसी के भाई ने दम तोड़ा है।
सीना किसी का कटा पड़ा है, किसी से मंजिल ने मुँह मोड़ा है।
हर कोई दर्द को देख रहा है, पर लगता सबको फिजुल है।
गरीब,लाचार ,मजदूर हु में,बस मेरा ये कसूर है।
भूखा पैदल चल रहा हूँ, अभी घर मेरा बहुत दूर है।

                             #DK #लाचार_मजदूर #क्रांतिकारी
(लाचार मजदूर)

गरीब,लाचार ,मजदूर हु में,बस मेरा ये कसूर है।
भूखा पैदल चल रहा हूँ, अभी घर मेरा बहुत दूर है।

घर से निकला सोचा ना था,की ऐसा वक्त भी आयेगा।
रोटी के बदले फ़ोटो खीचकर, वो गरीब का मजाक बनाएगा।
पैदल ही घर को चल पड़ा, अपनो से मिलने का शरूर है।
गरीब,लाचार,मजदूर हु में,बस मेरा ये कसूर है।

जो देश छोड़कर निकल लिए,आज उनपे रहमत जारी है।
जिनका खून देश की नींव में है,आज वक्त भी उनपे भारी है।
भूख से दम ना तोडेंगे हम, साथ अपनो के मरणा मंजूर है।
गरीब,लाचार,मजदूर हु में,बस मेरा ये कसूर है।

कोई दे गया झूठी तस्सली, किसी ने अपनी रोटी शेखी है।
एक रोटी पे दो वक्त गुजारे, हमने वो गरीबी देखी है।
गरीब को मरते उसके हाल पर छोड़ा, ये दुनिया का दस्तूर है।
गरीब,लाचार,मजदूर हु में,बस मेरा ये कसूर है।

दो छोटे बच्चे गोद मे है,माँ,बहन के पैर में छाले है।
वो बच्चे भूखे रो रहे है, जो प्यार से हमने पाले है।
मरे के मुँह में घी लगाते, ये दुनिया का उसूल है।
गरीब,लाचार,मजदूर हु में,बस मेरा ये कसूर है।

कुचला पड़ा परिवार किसी का,किसी के भाई ने दम तोड़ा है।
सीना किसी का कटा पड़ा है, किसी से मंजिल ने मुँह मोड़ा है।
हर कोई दर्द को देख रहा है, पर लगता सबको फिजुल है।
गरीब,लाचार ,मजदूर हु में,बस मेरा ये कसूर है।
भूखा पैदल चल रहा हूँ, अभी घर मेरा बहुत दूर है।

                             #DK #लाचार_मजदूर #क्रांतिकारी