तुफान मे हो किश्ती , या साहिल पे सही वक्त़ के आगे वो कभी , घबराया न था !! हम भी होते साहब , बादशाह आज के इस तरह किसी ने समझाया न था !! रात शबनम से थी, भीगीं मगर चाँद , चाँदनी पे मुस्कराया न था !! सुबह तो हो ही गई , बेसक फायदा वक्त़ का हमने ,उठाया न था !! मोहब्बत तो हमने भी की थी , बेसक पर किसी को हमने , बरगलाया न था !! आग लग तो जाती , मेरे भी जिस्म़ में वक्त़ रहते जो उसने, जगाया न था !! अनवर हुसैन अणु भागलपुरी #धौर्य तुफान मे हो किश्ती , या साहिल पे सही वक्त़ के आगे वो कभी , घबराया न था !! हम भी होते साहब , बादशाह आज के इस तरह किसी ने समझाया न था !! रात शबनम से थी, भीगीं मगर