( पन्ना जीवन के किताब का ) मैं किताब का पन्ना,पलटता रहा कोरे कागज दस्तक देते है जो राज तलाशने निकला था , वो तो बात खाली रह गये मैं भूखा ही सो गया , जिंदगी की नुमाइश करते -करते सुकून कहाँ मिला इस मोह- माया के मेहफिल में उलझा हुआ परेशान हूँ मैं ऐ मौत सिने से लगा ले मुझे , दो बात जीवन की बड़ी सच्ची है जिंदगी, जीवन और मृत्यु के बिच अटकी है लड़ाई हक की लड़ाते -लड़ाते थक गया ऐ जिंदगी तूझ से मैं पन्ना किताब के खत्म हो रहे है आखिरी पन्ना किताब मे सिर्फ मौत की है अनुराधा मिश्र ©anu Anuradha mishra #Books