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आदमी अपने मन का दो तरह से उपयोग कर सकता है, फोटो—

 आदमी अपने मन का दो तरह से उपयोग कर सकता है, फोटो— प्लेट की तरह या दर्पण की तरह। जो आदमी फोटो—प्लेट की तरह अपने मन का उपयोग करता है, वह सब चीजों को संगृहीत करता जाता है, पकड़ता जाता है। जिंदगी में जो भी होता है, सब इकट्ठा करता जाता है— कूड़ा—करकट, गाली—गलौज, किसने क्या कहा क्या नहीं कहा; क्या पढ़ा, क्या सुना— जो भी होता है, सब इकट्ठा करता जाता है।

यही इकट्ठा बोझ भीतर आत्मा का बुढ़ापा हो जाता है। यह जो बोझ है, यही बुढ़ापा है आध्यात्मिक अर्थों में। शरीर हो सकता है आपका जवान भी हो। लेकिन यह जो बोझ है भीतर, यही आध्यात्मिक बुढ़ापा है।

जिस दिन आपको यह समझ में आ जाता है कि मैं मन का एक और तरह का उपयोग भी कर सकता हूं मिरर लाइक, दर्पण की तरह; आप इस सारे बोझ को पटक देते हैं और खाली दर्पण हो जाते हैं। यह जो खाली दर्पण हो जाना है, यह है बचपन आध्यात्मिक अर्थों में—निबोंझ, निर्भार।
 आदमी अपने मन का दो तरह से उपयोग कर सकता है, फोटो— प्लेट की तरह या दर्पण की तरह। जो आदमी फोटो—प्लेट की तरह अपने मन का उपयोग करता है, वह सब चीजों को संगृहीत करता जाता है, पकड़ता जाता है। जिंदगी में जो भी होता है, सब इकट्ठा करता जाता है— कूड़ा—करकट, गाली—गलौज, किसने क्या कहा क्या नहीं कहा; क्या पढ़ा, क्या सुना— जो भी होता है, सब इकट्ठा करता जाता है।

यही इकट्ठा बोझ भीतर आत्मा का बुढ़ापा हो जाता है। यह जो बोझ है, यही बुढ़ापा है आध्यात्मिक अर्थों में। शरीर हो सकता है आपका जवान भी हो। लेकिन यह जो बोझ है भीतर, यही आध्यात्मिक बुढ़ापा है।

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आदमी अपने मन का दो तरह से उपयोग कर सकता है, फोटो— प्लेट की तरह या दर्पण की तरह। जो आदमी फोटो—प्लेट की तरह अपने मन का उपयोग करता है, वह सब चीजों को संगृहीत करता जाता है, पकड़ता जाता है। जिंदगी में जो भी होता है, सब इकट्ठा करता जाता है— कूड़ा—करकट, गाली—गलौज, किसने क्या कहा क्या नहीं कहा; क्या पढ़ा, क्या सुना— जो भी होता है, सब इकट्ठा करता जाता है। यही इकट्ठा बोझ भीतर आत्मा का बुढ़ापा हो जाता है। यह जो बोझ है, यही बुढ़ापा है आध्यात्मिक अर्थों में। शरीर हो सकता है आपका जवान भी हो। लेकिन यह जो बोझ है भीतर, यही आध्यात्मिक बुढ़ापा है। जिस दिन आपको यह समझ में आ जाता है कि मैं मन का एक और तरह का उपयोग भी कर सकता हूं मिरर लाइक, दर्पण की तरह; आप इस सारे बोझ को पटक देते हैं और खाली दर्पण हो जाते हैं। यह जो खाली दर्पण हो जाना है, यह है बचपन आध्यात्मिक अर्थों में—निबोंझ, निर्भार। #nojotophoto