वो प्रेम में मरता रहा, मोहब्बत की खाक मलता रहा, आलम तो इस आशियाने की, हर सख़्स तालिया बजा हसता रहा। दिव्यतम् #खुबसुरती #दर्दे #ए #मोहब्बत अशोक द्विवेदी "दिव्य"