White एक अनचाहा सफर एक चलता हुआ सफर, सामने कोहरे की पूरी छाया, चलती हुई एक अनंत यात्रा, उदय का अंत होना ही था।। रूह में भटकती ख्वाहिशें; अंतर्मन में भरा उबाल। आसमां में जो चढ़ा तो, गिरना भी जरूरी था।। मन में अंतस की पुकार; तमस में अमावस की बहार, उम्मीदों की अति में, फिसलन तो होना ही था। ये वसंत का मौसम; मौसम में पूरी अंगड़ाई। समय को बदलता देख; पतझड का आना भी स्वाभाविक था।। उम्मीदों में अंबर से कभी, मणियों का गिरना कहा जरूरी था ? लक्ष्य ही हो जब एक अंतर में, गिरने पर उसे झेलना भी जरूरी था।। कहूं कहा ये अब ये वेदना; खुद का संभलना जरूरी था। ये संसार की रीत है, भूलकर सब, अब बढ़ना भी एक मजबूरी था।। ©Saurav life #Emotional_Shayari #sauravlife