तुझ से ऐसी है लगन,न जाउँ बैकुण्ठ,तज के वृंदावन, तुझ में ही रम जाउं,झूलू तेरे साथ अबके सावन। बस इतनी सी है चाह बन जाउं बृज की मोर , मगन होके नाचूं,जब हो तेरी बंसी का शोर। जो पंख गिरे धरनी पे उठा के सम्हालूं, तेरे आते ही तेरे माथे पे सजा लूं। बस इतनी सी है चाह,बन जाउं,बृज की गोपी, मेरे घर का माखन चुराके खाओ तुम रोज ही। जब रहस रचाओ मनमोहन झूमूं तेरे संग-संग, बस तेरे ही रंग में रंंग लूं अपना अंग-अंग।@Sweeti #Krishna ki gopi