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जागो भारत जागो 'अवधारणा' हमारी निती राजनिती अच्छ

जागो भारत जागो 
'अवधारणा'
हमारी निती राजनिती 
अच्छे बुरे की निजता से परे 
बेखौप,तल्ख आरोप के व्याख्यान पर 
हमसे चौकन्ना कोई हो कैसे 
हमारा स्पष्ट पारदर्शी इतिहास 
धुसरित है स्वार्थ से 
जहाँ यतन से ढूँढा था हमने विकृत 
भाँप लिया था ठप पडी इच्छा-शक्ती 
तब इसके उत्तथान के लिये बने बेखौप 
बिसरायी संवैधानिक बाधा 
विकास किया विकृत का 
केंद्रित की क्षेत्रियता 
प्रतिष्ठित की मानसिकता 
झेला अनुशासन हीनता का पश्याताप 
परंपरा तोडा परिवार जोडा 
सार्वजनिकता में सुलभ हुये 
भय के माहामंडन में बैर लिया
धौस से हमारा शोषन हुआ 
वाणिज्यिक धन को तरसते रहे 
राष्ट्रपति मनोनित संस्था के हाशिये पर 
लम्बा संघर्ष किया 
आसान नहीं रहा 
जरा सोचो,
अहिंसा के पूजारियो और संवैधानिक पीठ की कर्मण्यता 
कल्याणकारी रुप और सुदृढ विधि-व्यवस्था का खुला मंच 
दिमाग खराब !
तब हमने आविष्कार किया 
अशिक्षित समाज के लिये भ्रम 
धर्म और जात में खोये को धन 
अधुरा-सच का मूल मंत्र 
भोकाल का नेपथ्य तंत्र
हम बोल-बोल कर अनशुने रहे 
ऊठती ऊंगलियो को अप्रमाण बताया 
अछूत का विषपाण किया 
फसते ही चले गये 
तब ये विरादरी बनी त्रुव का पत्त्ता
जहां असुरक्षित लाभ बढा रहे है,और हमें मिल रहा है असंवेदनशीलों का बहुमत! #अवधारणा
जागो भारत जागो 
'अवधारणा'
हमारी निती राजनिती 
अच्छे बुरे की निजता से परे 
बेखौप,तल्ख आरोप के व्याख्यान पर 
हमसे चौकन्ना कोई हो कैसे 
हमारा स्पष्ट पारदर्शी इतिहास 
धुसरित है स्वार्थ से 
जहाँ यतन से ढूँढा था हमने विकृत 
भाँप लिया था ठप पडी इच्छा-शक्ती 
तब इसके उत्तथान के लिये बने बेखौप 
बिसरायी संवैधानिक बाधा 
विकास किया विकृत का 
केंद्रित की क्षेत्रियता 
प्रतिष्ठित की मानसिकता 
झेला अनुशासन हीनता का पश्याताप 
परंपरा तोडा परिवार जोडा 
सार्वजनिकता में सुलभ हुये 
भय के माहामंडन में बैर लिया
धौस से हमारा शोषन हुआ 
वाणिज्यिक धन को तरसते रहे 
राष्ट्रपति मनोनित संस्था के हाशिये पर 
लम्बा संघर्ष किया 
आसान नहीं रहा 
जरा सोचो,
अहिंसा के पूजारियो और संवैधानिक पीठ की कर्मण्यता 
कल्याणकारी रुप और सुदृढ विधि-व्यवस्था का खुला मंच 
दिमाग खराब !
तब हमने आविष्कार किया 
अशिक्षित समाज के लिये भ्रम 
धर्म और जात में खोये को धन 
अधुरा-सच का मूल मंत्र 
भोकाल का नेपथ्य तंत्र
हम बोल-बोल कर अनशुने रहे 
ऊठती ऊंगलियो को अप्रमाण बताया 
अछूत का विषपाण किया 
फसते ही चले गये 
तब ये विरादरी बनी त्रुव का पत्त्ता
जहां असुरक्षित लाभ बढा रहे है,और हमें मिल रहा है असंवेदनशीलों का बहुमत! #अवधारणा