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क्यूँ रह-रहकर याद आते हो, तुम मुझे तन्हाई में। किस

क्यूँ रह-रहकर याद आते हो, तुम मुझे तन्हाई में।
किस तरह जियूँगा मैं अब, इस ग़म-ए-जुदाई में।

साँसें अधूरी धड़कन अधूरी तुम बिन अधूरे हम हैं।
जीना भी मुश्किल हो रहा है, कैसे कहें क्या ग़म हैं।
मुश्किल हैं हालात मेरे अब, इस दर्द-ए-रुसवाई में।
किस  तरह जियूँगा मैं अब, इस  ग़म-ए-जुदाई में।

तुमको ये इल्म नहीं, कि तकलीफ़ में कितने हम हैं।
क्या-क्या न किया जतन हमने, फिर भी ये ग़म है।
दिन रात मैं खोया रहता हूँ, इन यादों की गहराई में।
किस  तरह जियूँगा मैं अब, इस  ग़म-ए-जुदाई में।

कह दो तुमको भी मोहब्बत है , तुम्हें मेरी कसम है।
मैं जान भी अपनी दे सकता हूँ, तू ही मेरी सनम है।
तुमको ही ढूँढ़ता रहता हूँ मैं, अब अपनी परछाईं में।
किस  तरह जियूँगा मैं अब, इस  ग़म-ए-जुदाई में।

क्यूँ रह-रहकर याद आते हो, तुम मुझे तन्हाई में।
किस तरह जियूँगा मैं अब, इस ग़म-ए-जुदाई में। ♥️ Challenge-584 #collabwithकोराकाग़ज़ 

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क्यूँ रह-रहकर याद आते हो, तुम मुझे तन्हाई में।
किस तरह जियूँगा मैं अब, इस ग़म-ए-जुदाई में।

साँसें अधूरी धड़कन अधूरी तुम बिन अधूरे हम हैं।
जीना भी मुश्किल हो रहा है, कैसे कहें क्या ग़म हैं।
मुश्किल हैं हालात मेरे अब, इस दर्द-ए-रुसवाई में।
किस  तरह जियूँगा मैं अब, इस  ग़म-ए-जुदाई में।

तुमको ये इल्म नहीं, कि तकलीफ़ में कितने हम हैं।
क्या-क्या न किया जतन हमने, फिर भी ये ग़म है।
दिन रात मैं खोया रहता हूँ, इन यादों की गहराई में।
किस  तरह जियूँगा मैं अब, इस  ग़म-ए-जुदाई में।

कह दो तुमको भी मोहब्बत है , तुम्हें मेरी कसम है।
मैं जान भी अपनी दे सकता हूँ, तू ही मेरी सनम है।
तुमको ही ढूँढ़ता रहता हूँ मैं, अब अपनी परछाईं में।
किस  तरह जियूँगा मैं अब, इस  ग़म-ए-जुदाई में।

क्यूँ रह-रहकर याद आते हो, तुम मुझे तन्हाई में।
किस तरह जियूँगा मैं अब, इस ग़म-ए-जुदाई में। ♥️ Challenge-584 #collabwithकोराकाग़ज़ 

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