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सुबह सवेरे एक ख्वाब है देखा मेरठ वाली का कुछ अहंका

सुबह सवेरे एक ख्वाब है देखा
मेरठ वाली का कुछ अहंकार है टूटा
आज़ उसे है किसी ने टोका
किसी की गई आज हिल
धर के उसने आज उसको सोंटा
आज मेरठ वाली गई है हिल
उसे कैसे गया वो मिल।।
सुबह सवेरे एक ख्वाब है देखा
मेरठ वाली का कुछ अहंकार है टूटा
आज़ उसे है किसी ने टोका
किसी की गई आज हिल
धर के उसने आज उसको सोंटा
आज मेरठ वाली गई है हिल
उसे कैसे गया वो मिल।।