भौतिक जीवन का लक्ष्य भोग है, आध्यात्मिक साधनों का लक्ष्य मोक्ष है। यही हमारे मन की दो धाराएं हैं। मन ही किसी धारा में फैलता है, वही सिकुड़ता है। अहंकार ही पतन की शुरुआत है। अहंकारी किसी दूसरे को नहीं स्वयं को खत्म कर लेता है। अहंकार का कोप पीढिय़ों को भोगना पड़ता है। अहंकार ही व्यक्ति को रावण बनाता है। शिव से प्राप्त शक्ति के अहंकार से ग्रस्त होकर कैलाश पर्वत को उठाने चला था। शिव से वर प्राप्त करके भस्मासुर शिव को ही भस्म करने दौड़ पड़ा था। वैसे ही आज जनता जनार्दन से शक्ति प्राप्त करके जनप्रतिनिधि जनता को ही छीलने में जुट जाते हैं।