ग्रंथ हो या साहित्य सुधारात्मक प्रक्रिया के अनुसार अद्यतन होता ही रहता है साथ ही उनसे जुड़ी बातों पर आलोचनाओं का होना स्वभाविक है,आलोचना सुधार की हीं एक प्रक्रिया है । आलोचना तथ्यों के आधार पर तर्क संगत होनी चाहिए। कोई भी साहित्यिक ग्रंथ ना तो शाश्वत हैं और ना हीं अंतिम सत्य उनपर शोध एवं संसोधन होना चाहिए।
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