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ग्रंथ हो या साहित्य सुधारात्मक प्रक्रिया के अनुसा

ग्रंथ हो या साहित्य  सुधारात्मक प्रक्रिया के अनुसार  अद्यतन होता ही रहता है साथ ही उनसे जुड़ी बातों पर आलोचनाओं का होना स्वभाविक है,आलोचना सुधार की हीं एक प्रक्रिया है । आलोचना तथ्यों के आधार पर तर्क संगत होनी चाहिए। कोई भी साहित्यिक ग्रंथ ना तो शाश्वत हैं और ना हीं अंतिम सत्य उनपर शोध एवं संसोधन होना चाहिए।

©Kamlesh Gupta Nirala
  ग्रंथ हो या साहित्य  सुधारात्मक प्रक्रिया के अनुसार  अद्यतन होता ही रहता है साथ ही उनसे जुड़ी बातों पर आलोचनाओं का होना स्वभाविक है,आलोचना सुधार की हीं एक प्रक्रिया है । आलोचना तथ्यों के आधार पर तर्क संगत होनी चाहिए। कोई भी साहित्यिक ग्रंथ ना तो शाश्वत हैं और ना हीं अंतिम सत्य उनपर शोध एवं संसोधन होना चाहिए। 
#तुलसीदास #रचित #रामायण

ग्रंथ हो या साहित्य सुधारात्मक प्रक्रिया के अनुसार अद्यतन होता ही रहता है साथ ही उनसे जुड़ी बातों पर आलोचनाओं का होना स्वभाविक है,आलोचना सुधार की हीं एक प्रक्रिया है । आलोचना तथ्यों के आधार पर तर्क संगत होनी चाहिए। कोई भी साहित्यिक ग्रंथ ना तो शाश्वत हैं और ना हीं अंतिम सत्य उनपर शोध एवं संसोधन होना चाहिए। #तुलसीदास #रचित #रामायण #Thoughts

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