आज खेलता देख कुछ बच्चो को मुझे मेरे बचपन की याद आई हैं कितना प्यारा था बचपन मेरा ये सोच कर होटों पर एक प्यारी सी मुस्कान आई है । पहले हुआ करती थी शाम आज सुबह के बाद सीधा रात आई है। जिन गलियों में गुजरा था बचपन सारा आज वो गलियां भी सुनसान सी हो गई है। वो शरारत कर के घर जाना और पापा की मार से बचके मां के पल्लू में छुप जाना। स्कूल से आते ही फेंक बस्ता किसी कोने में बिना कुछ खाए पिए ही खेलने निकल जाना और शाम ढलने के बाद ही घर आना ऐसा था बचपन हमारा। जहां न जिम्मेदारियां थी ना फिकर थी बस अपनी ही धुन में चलते जाना। मुझे आज भी याद है वह बाबा के कंधों पर पूरा गांव घूम आना और जिद करके खिलौना भी ले आना और घर के आंगन में बैठकर खेल लेना ऐसे बीता है बचपन मेरा। और वो मां की लोरी और नानी मां की कहानी मुझे बहुत याद आती है वह सुनने को नहीं मिलती इसलिए वह सुनने के लिए आज कान तरस जाते हैं। कि ना जाने यह कैसा दौर है आया है यहां बचपन सिर्फ मोबाइल और कंप्यूटर में ही समाया है । उन बीते हुए पलों को में फिर से जीना चाहता हूं वह बचपन का रस फिर से पीना चाहता हूं इस थमी हुई जिंदगी में में बचपन का रंग घोलना चाहता हूं। mere bachpan k din.........