बंजारों सा जीता हूँ, बेगारों से हैं ख्यालात मेरे, तुम समझ ही ना पाओगे, हैं उलझे सवालात मेरे, ना मंज़िल की ख़बर है, ना तो रस्ते से वाक़िफ हूँ मैं, ख़ुद ही खुद से जवाब माँगते हैं अब ये जज़्बात मेरे, इंतजार है आँखों में मगर किसका, अब ये भी भूल चुके हैं, कैसा है सफ़र कि ठोकरों से नहीं, सहारों से ही टूट चुके हैं, मगर दिल ये आज भी बंजारा है, इसे रुकना कभी भाया नहीं, मगर याद ये भी रखेगा कि हम अपने ही सफ़र में पीछे छूट चुके हैं, मुश्किलों भरा सफ़र है ये मेरा, हर शहर से मिले अश्को को पीता हूँ, क्या करूँ, बेगारों सी ही सोच है मेरी और बंजारों सा ही तो जीता हूँ। BY:— © Saket Ranjan Shukla IG:— @my_pen_my_strength बंजारों सा मैं जीता हूँ...! #life #lifequotes #lifelessons #traveller #hindipoetry #writer #Hindi #Nojoto #poem #Poetry