एक डोर मेरे हाथ थी कहीं-कहीं से उसका रंग फीका पड़ा था उसमे लगीं बेहिसाब गांठ थी फिर भी मैं उस पतंग को उड़ा रहा था वो अन-चाहा सा रिश्ता निभा रहा था... -मनीष महरानियाँ #एक_डोर_और_उसमें_पड़ी_गाँठें