बांध कफ़न खुद ही वो सर से निकल गए।। जवान मेरे देश के घर से निकल गए।। गर्मी की हो तपन या हों बर्फीली हवाएं। तूफां भी देख हौंसले डर के निकल गए।। जज्बा है देश प्रेम का मरता नहीं कभी। अमर हुए वो वीर जो मर के निकल गए।। चलाते रहे गोलियां रुकती रही सांसे। अदा वो फ़र्ज़ माटी के करके निकल गए।। तूफान थे इरादों में बारूद था सीना। मुठ्ठी में आंधियां लिए लड़ के निकल गए।। आंचल से दूध बह गया राखी तड़फ गई। सीना पिता का गर्व से भर के निकल गए।। वह राह तकती रह गईं बनने को दुल्हनियां। वतन की मांग खूं से वो भर के निकल गए।। महबूब वतन सुरभि उनकी सांसों में वफा। दिलों में मुहब्बत को वो धर के निकल गए।। ©रिंकी कमल रघुवंशी "सुरभि" #पुलवामा #sainik