झूठ बे-पर्दा हो गया, तुम्हारी चाहत का। देख लिया रूप हमने, तुम्हारी अदावत का। बेवजह तुमने हमें, आज तक भ्रम में रखा। खूब सिला दिया तुमने, हमारी शराफ़त का। हमने तुम्हें अपना माना और दिल में जगह दी। तुमने क्यूँ तिरस्कार किया हमारी मोहब्बत का। चाहत न थी तो दूर रहते, क्यूँ दिल में बस गए। खूब फायदा उठाया तुमने, हमारी इजाज़त का। क्यूँ ऐसा किया आखिर तुमने, दिल तोड़ गए। सज़ा भी तुम्हें अब क्या दें हम इस बगावत का। ♥️ Challenge-596 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ विषय को अपने शब्दों से सजाइए। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।