कागज़ की नाव है या रेत के मकां जैसा है, ये ख्वाबों का शहर आब के बुलबुले जैसा है। स्याह दिन और जर्द़ रातें भी होती हैं, मर्ज-ए-इश्क़ है साहब दुआ के जैसा है। कागज़ की नाव है या रेत के मकां जैसा है, ये ख्वाबों का शहर आब के बुलबुले जैसा है। स्याह दिन और जर्द़ रातें भी होती हैं, मर्ज-ए-इश्क़ है साहब दुआ के जैसा है। अब:- पानी स्याह:- काला जर्द़:- सफेद #yqquotes