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मुस्कराहटों पर दिल फिसलते हो जहाँ उन दिलों का क्य

मुस्कराहटों पर  दिल फिसलते हो जहाँ
उन दिलों का क्या करें साहिब, कपड़ों 
की तरह जो रंग बदलते हो, उन दिलों 
का क्या करें साहिब, महबूब जिनकी
हर गलियों में हो,आशिक वही कामयाब
होता है,बिना मेहबूब के शख़्स को, 
आजकल मोहबत कहाँ नसीब होता है,
 यहाँ हँसीनाये भी तजुर्बा देख, अपना 
आशिक चुनती है,बिन तर्जुर्बे को कहाँ
 प्यार मिलता है, मुस्कराहटों पर दिल 
फिसलते हो, जहाँ उन दिलों का क्या
करें सहैब, दौर आ चला है, कुछ नया सा
 पुराना दौर बीत चला है,अब प्यार इंसान 
से नही, पैसों से हुआ करता है, गाड़ी,
 बंगला, हो पास जिसके प्यार खुद चला
 आता है,बिन दौलत के इंसान को, बस 
तरस ही रास आता है. मुस्कराहटों पर
दिल फिसलते हो जहाँ उन दिलों का क्या 
करें साहेब

©पथिक
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