बिछ चुकी है बिसाते फिर से , फिर नया अब एक खेल होगा, कुर्सी बदलेगी या बदला कोई चेहरा होगा , फिर नया अब एक खेल होगा .... सब के आगे अब हाथ जुड़ेंगे , गर्दन शीश भी अब डट के झुकेंगे , मुख से केवल अब फूल की बरसाते होंगी , वादों के फिर से नए मेले लगेगे, फिर नया अब एक खेल होगा ..... आंखों में नई आशाएँ होगी , नित नई अभिलाषाएं होगी , फिर नया अब एक खेल होगा .... आगे पीछे नारों की जयकार होगी , चमचों के सहारे होंगे , सबको अब ये एहसास होगा , हर व्यक्ति अब ख़ास होगा , फिर नया अब एक खेल होगा ... फिर आएगी परिणाम की घड़ी , फिर सबके बहाने होंगे , जनता फिर मुनहार करेगी , नेताओ के द्वार पड़ेगी , नेता जी के होंगे जब सबके सामने , जाने कितने उनके बहाने होंगे ,, फिर हमको मत का महत्व समझ आएगा , फिर नया अब एक खेल होगा ..... फिर नया अब एक खेल होगा ... ©Pragya Karn #nojotapp # chunav#poem #poetry