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She was mad for him but he was mad for him Homos

She was mad for him

but he was mad for him
 Homosexuality ~ समलैंगिकता
After menstruation this is the second topic people try to avoid any discussion about it. 
अगर बात करते भी हैं तो हंसी या मखौल के रूप में। फिल्मों में भी इस विषय को हास्य रूप में प्रदर्शित किया जाता है। जबकि ये एक इंसान की संवेदनाएं हैं जिनका खुले आम मज़ाक बनाया जाता है। क्या है समलैंगिकता? कभी मिले हो इससे? नहीं मिले तो कैसे पता कि इसका मज़ाक बनाते है सिर्फ इसलिए कि इसमें gender एक होता है तो बाप बेटे या मां बेटी या दोस्तों के रिश्ते की हंसी क्यूं नहीं उड़ाई जाती क्योंकि उनका रिश्ता पाक है और ये गंदा। एक बच्चे का मां के स्तन से लगाव, चकोर का चांद से लगाव आप महसूस नहीं कर सकते तो ये भी आपके लिए महसूस करना उतना ही मुश्किल है।ये सिर्फ आकर्षण, लगाव है अपने ही जैसे किसी व्यक्ति के प्रति एक शारीरिक खिंचाव तो इसमें गलत क्या है? एक स्त्री पुरुष का शारीरिक बंधन मान्य पर ये स्वीकार नहीं अगर करना है तो छुपकर करो या फिर हम मज़ाक में कहते फिरेंगे अरे बड़ी दोस्ती हो रही है gay/lesbian हो क्या।ये विषय मज़ाक का अब इसलिए नहीं रहा क्योंकि इसके कारण कई युवा अवसाद में चले जाते हैं ऐसी कई रिपोर्ट्स सामने आई है जिसमें आत्महत्या तक कर ली व्यक्ति ने इसे समाज के सामने आने के डर से जबकि इसे सुप्रीम कोर्ट की मान्यता भी मिल गई है पर एक सुप्रीम कोर्ट और भी है "समाज" उससे आज तक नहीं मिली..ऐसा व्यक्ति किस मानसिक स्थिति से गुजरता होगा इस खौफ से की समाज क्या कहेगा ...हम तो कपड़े भी कुछ ऊपर नीचे पहन लें तो समाज के डर से फट से बदल लेते हैं तो ये तो एक शारीरिक मांग है जिसे वो इंसान बदल नहीं सकता। हां ये हो सकता है जितना समझा है कि वो लोग जल्दी ही अपने ही जैसे किसी समलैंगिक के प्रति आकर्षित हो जाते होंगे क्यूंकि इस तरह के लोग संख्या में कम है तो उन्हें वो अपना सा लगता होगा। जिस तरह हम दर्द में हो और किसी दर्द में डूबे इंसान से मिले तो जल्दी जुड़ जाते है। बस इतना ही समझने की बात है कि ये विदेशी कल्चर के कारण नहीं हुआ है। समलैंगिक लोग हमारे देश में पहले भी थे पर टीवी, सिनेमा की अनुपस्थिति के कारण सामने नहीं आ पाया ये विषय। सोचने की बात है पर कोई नहीं सोचता। ये कोई बीमारी नहीं है सिर्फ एक हार्मोनल स्राव है। मेरा अनुरोध है कि इस विषय पर मखौल बनाना बंद कर दें अगर आप किसी की खुशी का कारण नहीं बन सकते तो आत्महत्या का कारण भी ना बने🙏

मैं जानती हूं आधे से ज़्यादा लोग मेरी इस बात से सहमत नहीं होंगे..पर एक लेखक का काम है उसे जो महसूस हो वो समाज तक पहुंचाए..जो इसके विरोध में होंगे उनके पास भी बहुत अच्छे तर्क होंगे वो भी अपने विचार कभी ना कभी रखेंगे मेरी तरह। बस मेरी चाहत इतनी है कि इस चीज को स्वीकार्य नहीं कर सकते तो सत्य को नकारिए भी मत। इसके भी कुछ अपने पहलू हैं। इतने असंवेदनशील भी मत होइए।🙏

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She was mad for him

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 Homosexuality ~ समलैंगिकता
After menstruation this is the second topic people try to avoid any discussion about it. 
अगर बात करते भी हैं तो हंसी या मखौल के रूप में। फिल्मों में भी इस विषय को हास्य रूप में प्रदर्शित किया जाता है। जबकि ये एक इंसान की संवेदनाएं हैं जिनका खुले आम मज़ाक बनाया जाता है। क्या है समलैंगिकता? कभी मिले हो इससे? नहीं मिले तो कैसे पता कि इसका मज़ाक बनाते है सिर्फ इसलिए कि इसमें gender एक होता है तो बाप बेटे या मां बेटी या दोस्तों के रिश्ते की हंसी क्यूं नहीं उड़ाई जाती क्योंकि उनका रिश्ता पाक है और ये गंदा। एक बच्चे का मां के स्तन से लगाव, चकोर का चांद से लगाव आप महसूस नहीं कर सकते तो ये भी आपके लिए महसूस करना उतना ही मुश्किल है।ये सिर्फ आकर्षण, लगाव है अपने ही जैसे किसी व्यक्ति के प्रति एक शारीरिक खिंचाव तो इसमें गलत क्या है? एक स्त्री पुरुष का शारीरिक बंधन मान्य पर ये स्वीकार नहीं अगर करना है तो छुपकर करो या फिर हम मज़ाक में कहते फिरेंगे अरे बड़ी दोस्ती हो रही है gay/lesbian हो क्या।ये विषय मज़ाक का अब इसलिए नहीं रहा क्योंकि इसके कारण कई युवा अवसाद में चले जाते हैं ऐसी कई रिपोर्ट्स सामने आई है जिसमें आत्महत्या तक कर ली व्यक्ति ने इसे समाज के सामने आने के डर से जबकि इसे सुप्रीम कोर्ट की मान्यता भी मिल गई है पर एक सुप्रीम कोर्ट और भी है "समाज" उससे आज तक नहीं मिली..ऐसा व्यक्ति किस मानसिक स्थिति से गुजरता होगा इस खौफ से की समाज क्या कहेगा ...हम तो कपड़े भी कुछ ऊपर नीचे पहन लें तो समाज के डर से फट से बदल लेते हैं तो ये तो एक शारीरिक मांग है जिसे वो इंसान बदल नहीं सकता। हां ये हो सकता है जितना समझा है कि वो लोग जल्दी ही अपने ही जैसे किसी समलैंगिक के प्रति आकर्षित हो जाते होंगे क्यूंकि इस तरह के लोग संख्या में कम है तो उन्हें वो अपना सा लगता होगा। जिस तरह हम दर्द में हो और किसी दर्द में डूबे इंसान से मिले तो जल्दी जुड़ जाते है। बस इतना ही समझने की बात है कि ये विदेशी कल्चर के कारण नहीं हुआ है। समलैंगिक लोग हमारे देश में पहले भी थे पर टीवी, सिनेमा की अनुपस्थिति के कारण सामने नहीं आ पाया ये विषय। सोचने की बात है पर कोई नहीं सोचता। ये कोई बीमारी नहीं है सिर्फ एक हार्मोनल स्राव है। मेरा अनुरोध है कि इस विषय पर मखौल बनाना बंद कर दें अगर आप किसी की खुशी का कारण नहीं बन सकते तो आत्महत्या का कारण भी ना बने🙏

मैं जानती हूं आधे से ज़्यादा लोग मेरी इस बात से सहमत नहीं होंगे..पर एक लेखक का काम है उसे जो महसूस हो वो समाज तक पहुंचाए..जो इसके विरोध में होंगे उनके पास भी बहुत अच्छे तर्क होंगे वो भी अपने विचार कभी ना कभी रखेंगे मेरी तरह। बस मेरी चाहत इतनी है कि इस चीज को स्वीकार्य नहीं कर सकते तो सत्य को नकारिए भी मत। इसके भी कुछ अपने पहलू हैं। इतने असंवेदनशील भी मत होइए।🙏

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