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यह कितना अजीब दौर है जहां:- दो चार रूपए की खातिर,

यह कितना अजीब दौर है जहां:-
दो चार रूपए की खातिर, मानुष भी बिक जाता है। 
छोड़ अपना धर्म ईमान,अधर्म को अपनाता है।. 
दो चार रूपए की खातिर, मानुष भी बिक जाता है.....
कल युग के इस अंध युग में,मोल सबका लग जाता है।
धरती से अम्बर सभी ,देखो  यहां बिक जाता है।
दो चार रूपए की खातिर,ईमान को भूल जाता है। 
चंद पैसों की खातिर , इंसान भी बिक जाता है।
मानुष ने कर लिया प्रगति, चन्द्रमा पर भी जाता है,
फिर भी इस कलयुग में देखो ,पानी ना मुफ्त पी पाता है, 
पानी भी बिक जाता है।
दो चार रूपए की खातिर ,मानुष भी बिक जाता है। 
छोड़ अपना धर्म ईमान ,अधर्म को अपनाता है।
जिसने उसको जन्म दिया,पाल पोष के बड़ा किया,
 उनको ही वो रूलाता है।चन्द पैसों की खातिर ,
ईमान भी भूल जाता है, मानुष भी बिक जाता है,
 मानुष भी बिक जाता है।......२

                          -GUMNAAM BABA #online_poetry ,#open_mic 
#nadaan_jindagi,
#guilt_pleasure
#love_poetry
यह कितना अजीब दौर है जहां:-
दो चार रूपए की खातिर, मानुष भी बिक जाता है। 
छोड़ अपना धर्म ईमान,अधर्म को अपनाता है।. 
दो चार रूपए की खातिर, मानुष भी बिक जाता है.....
कल युग के इस अंध युग में,मोल सबका लग जाता है।
धरती से अम्बर सभी ,देखो  यहां बिक जाता है।
दो चार रूपए की खातिर,ईमान को भूल जाता है। 
चंद पैसों की खातिर , इंसान भी बिक जाता है।
मानुष ने कर लिया प्रगति, चन्द्रमा पर भी जाता है,
फिर भी इस कलयुग में देखो ,पानी ना मुफ्त पी पाता है, 
पानी भी बिक जाता है।
दो चार रूपए की खातिर ,मानुष भी बिक जाता है। 
छोड़ अपना धर्म ईमान ,अधर्म को अपनाता है।
जिसने उसको जन्म दिया,पाल पोष के बड़ा किया,
 उनको ही वो रूलाता है।चन्द पैसों की खातिर ,
ईमान भी भूल जाता है, मानुष भी बिक जाता है,
 मानुष भी बिक जाता है।......२

                          -GUMNAAM BABA #online_poetry ,#open_mic 
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