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मुल्क में कबूतर बहुत हैं... मज़हब की, गुफ्तगू करते

मुल्क में कबूतर बहुत हैं...
मज़हब की, गुफ्तगू करते..
नफ़रत की, आरजू करते..
पंखों मे जहर फैलाए,
गुटर-गू ,गुटर-गू करते...

कुछ कबूतरों ने, मीनारों पे चढ़ कर,
बढ़ा ली हैं दाढियाँ..
कुछ कबूतरों ने, मंदिरों के द्वार पे,
पहन रखी हैं भगवा साड़ियाँ..
कोई हाथ लगा के तो दिखाए,
साध्वी प्रगया को,
ये चोंच मारेंगे...
कोई ज़रा सी उंगली उठा दे
ज़ाकिर नायक पे,
ये नोंच मारेंगे..
बातें अमन की करते हैं कबूतर,
मगर मज़हब पे आ जाए तो,
नाखूनों से खरोंच मारेंगे..

क्या देखेंगे? और क्या दिखाएँगे?
अंधे कबूतर हैं ये आँख वाले,
सियासी पट्टी बाँध आँखों पे,
चोंच मारेंगे, और मर जाएँगे..
मंच से खड़े होकर भड़काएँगे..
धरना देंगे, अनशन करेंगे,
आतंकियों से हमदर्दी जताएंगे..

यही पास की ही दुकान में,
मिलती हैं सस्ती मोमबत्तियाँ..
खरीद लाएँगे, जलाएँगे,
मगर आँख से ,
पट्टी नही हटाएँगे..
ये कबूतर ,
आँख से पट्टी नही हटाएँगे..
मुल्क में कबूतर बहुत हैं...
मज़हब की, गुफ्तगू करते..
नफ़रत की, आरजू करते..
पंखों मे जहर फैलाए,
गुटर-गू ,गुटर-गू करते...

कुछ कबूतरों ने, मीनारों पे चढ़ कर,
बढ़ा ली हैं दाढियाँ..
कुछ कबूतरों ने, मंदिरों के द्वार पे,
पहन रखी हैं भगवा साड़ियाँ..
कोई हाथ लगा के तो दिखाए,
साध्वी प्रगया को,
ये चोंच मारेंगे...
कोई ज़रा सी उंगली उठा दे
ज़ाकिर नायक पे,
ये नोंच मारेंगे..
बातें अमन की करते हैं कबूतर,
मगर मज़हब पे आ जाए तो,
नाखूनों से खरोंच मारेंगे..

क्या देखेंगे? और क्या दिखाएँगे?
अंधे कबूतर हैं ये आँख वाले,
सियासी पट्टी बाँध आँखों पे,
चोंच मारेंगे, और मर जाएँगे..
मंच से खड़े होकर भड़काएँगे..
धरना देंगे, अनशन करेंगे,
आतंकियों से हमदर्दी जताएंगे..

यही पास की ही दुकान में,
मिलती हैं सस्ती मोमबत्तियाँ..
खरीद लाएँगे, जलाएँगे,
मगर आँख से ,
पट्टी नही हटाएँगे..
ये कबूतर ,
आँख से पट्टी नही हटाएँगे..
rahulmishra7749

Rahul Mishra

New Creator