बचपन का ख़्वाब था, छू लूँ चाँद सितारों को, देख सकूँ दुनिया के नज़ारों को। उड़ सकूँ गगन में, चिड़ियों सी चहचहा लूँ, कभी बनूँ फूल, तो कभी रंगबिरंगी तितली, घर से बेख़ौफ़ होकर जो निकली। पर ये हो न सका। अनदेखे डर ने डाल दिए पैरों में बंधन, अनजाने सफ़र पर जाने से सहम गया मन। परम्पराओं का साथ निभाए जाते हैं, हम रीति-रिवाज मनाए जाते हैं, बचपन का ख्वाब कैसे करूं पूरा, जब अंदर का साहस है अधूरा । जब तक मन न हो निश्छल, परम 'नेह' की राह पर कैसे जाऊँ निकल। कुछ सपने हमेशा ज़िंदा रहते हैं। #बचपनकाख़्वाब #collab #yqdidi #YourQuoteAndMine Collaborating with YourQuote Didi