हे मृदुभाषी सखी मेरी, तुम क्यूँ मधुबन में जाती हो? आपहिं कलियाँ खिल जाती हैं, जब तुम ऐसे मुस्काती हो। उमड़-घुमड़ घनघोर घटा, रसधार बहाने लगती है, चंचल-चपला सबके चित में, एक चाप चलाने लगती है, भंवरों के गुंजन की उपमा, कोई सारंग बजाई जाती हो, आपहिं सरगम छिड़ जाती है, जब तुम ऐसे बतलाती हो। तेरे तन की सुंदरता पर, श्वेत दुग्ध भी मटमैला, तेरी आभा अमृत लागे, बांकी अमृत होय विषैला, दे मर्मस्पर्स प्रिये तुम जैसे, नदियों को स्नान कराती हो, आपहिं कंकर-कनक बने, जो तुम हाथ लगाती हो। हे मृदुभाषी सखी मेरी, तुम क्यूँ मधुबन में जाती हो?...... हे मृदुभाषी सखी मेरी, तुम क्यूँ मधुबन में जाती हो? आपहिं कलियाँ खिल जाती हैं, जब तुम ऐसे मुस्काती हो। उमड़-घुमड़ घनघोर घटा, रसधार बहाने लगती है, चंचल-चपला सबके चित में,