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माँ मंदिर की सीढ़ियों पे बैठे  रोटी के एक टुकड़े

माँ मंदिर की सीढ़ियों पे बैठे  
रोटी के एक टुकड़े को तरसे।। 

जिसको नौ महीने उस माँ ने अपनी कोख में रखा,  
बड़े लाड प्यार से तुझे पाला।। 
जब तू बिमार हुआ, ना उतरा उस माँ के गले से एक निवाला।। 
आज उस बेटे ने मां को एक रोटी का मोहताज बना डाला।। 

माँ का दिल चाहे कितना भी रोये।। 
माँ चाहे कई रातें भूंखी ही क्यूँ न सोये।। 
फिर भी न दे वो अपने बेटे को बददुआ।। 
माँ जब भी भगवान के आगे हाथ फैलाये, 
मेरा बेटा सलामत रहे मांगे वो बस यही दुआ।। 
_____
तू बीवी के साथ बैठ छप्पन भोग खाये। 
माँ के बारे में सोच तुझे जरा भी शर्म न आये। 
निर्लज्ज इंसान तू अपने किये पर थोड़ा भी न पछताये।। 

सुन तू अब बेशर्म औरत
जो तूने किया है, तेरी भी औलाद तुझे लौटाएगी।। 
पानी की एक बूंद को तरस कर तू भी मर जाएगी।।। 

सोनिका शुक्ला 
रीवा (मध्यप्रदेश) besharm aulad
माँ मंदिर की सीढ़ियों पे बैठे  
रोटी के एक टुकड़े को तरसे।। 

जिसको नौ महीने उस माँ ने अपनी कोख में रखा,  
बड़े लाड प्यार से तुझे पाला।। 
जब तू बिमार हुआ, ना उतरा उस माँ के गले से एक निवाला।। 
आज उस बेटे ने मां को एक रोटी का मोहताज बना डाला।। 

माँ का दिल चाहे कितना भी रोये।। 
माँ चाहे कई रातें भूंखी ही क्यूँ न सोये।। 
फिर भी न दे वो अपने बेटे को बददुआ।। 
माँ जब भी भगवान के आगे हाथ फैलाये, 
मेरा बेटा सलामत रहे मांगे वो बस यही दुआ।। 
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तू बीवी के साथ बैठ छप्पन भोग खाये। 
माँ के बारे में सोच तुझे जरा भी शर्म न आये। 
निर्लज्ज इंसान तू अपने किये पर थोड़ा भी न पछताये।। 

सुन तू अब बेशर्म औरत
जो तूने किया है, तेरी भी औलाद तुझे लौटाएगी।। 
पानी की एक बूंद को तरस कर तू भी मर जाएगी।।। 

सोनिका शुक्ला 
रीवा (मध्यप्रदेश) besharm aulad

besharm aulad #कविता