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सफऱ नाराज़गी से नफरत का {पूरा पढे कैप्शन में} हाँ य

सफऱ नाराज़गी से नफरत का
{पूरा पढे कैप्शन में} हाँ याद है मुझे को 31 दिसम्बर को तुमसे मासूम सी लड़ाई ओर झूठी नाराज़गी ताकि तुम मनाने आओ।दिन बीता,ओर फिर दिन बीते पर तुम्हारा कोई जवाब नही,ना ही कोई फ़ोन या मैसेज आया तुम्हारा।हैरान ओर बढ़ती बैचनी में ही मैंने तुम्हें फ़ोन किया।30 जनवरी सुबह 11 बजे कैसे हो तुम,हाँ मैं अच्छा हूँ कुछ काम है तो बोलो,मुझे लगा शायद नाराज़ है,पर नाराज़ तो मैं थी।ना ना जाना! काम नही था तुम्हे कोई फर्क नही पड़ा न हमने 1 महीना बात नही की।नही मैं बिजी था,अच्छा bye काम है।मुझे गुस्सा आया सोचा तुमसे बात नही करूँगी अब दिन बीत रहे थे,रातें रो रोकर कट रही थी।valentines day भी चला गया और दूरियां बढ़ती जा रही थी।27 फरवरी मेरा जन्मदिन था उस दिन सुबह से बस फ़ोन हाथ मे कहीँ तुम फोन करो और मैं उठा न सकी तो,गुस्सा भी तो बहुत आता है जनाब को,ढलते दिन के साथ चेहरा भी बुझ रहा था रात ठीक 9.07 मिनट पर तुम्हारा facebook पर नोटिफिकेशन आता है "HBD" पढ़कर दुख हुआ, बस इतनी सी जगह थी जिंदगी में कि तुम मेरे लिए कुछ ढंग के शब्द भी ना लिख पाए।सच्चाई से बेखबर मैं फैसला कर चुकी थी,अब तुमसे कोई रिश्ता नही होगा,सब खत्म।2 मार्च को एक दोस्त की id में उसके मैसेज पढ़कर पैरों तले जमीन निकल गई,ये इंसान इतना धोकेबाज़ है,मेरे साथ जो पल बिताए वो महज उसके लिए timepass था,वो मेरी दोस्त से अपनी एक सहेली से मिलने की मिन्नत कर रहा था,प्लीज मेरी प्रिया से बात करवा दो,मैं मर जाऊंगा उसके बिना,वो भी मुझसे बहुत प्यार करती है,हम शादी करने वाले है,उसके घरवाले मान नही रहे,तुम मदद करो।मेरी दोस्त ने कहा तुम प्रिया से प्यार करते हो तो निशा के साथ जो किया वो क्या था,जवाब आया कि निशा मेरे पीछे पड़ी है,मेरा उससे कोई नाता नही,मैंने तो कभी ज्यादा बात भी नही की उससे।और पढ़ते पढ़ते ,शायद मैं जितना रोई उसका हिसाब मैं शब्दो मे बयान भी न कर सकी।पीछे पड़ी थी,हाँ जब वो बीमार होता था उसकी देखभाल करने में पीछे ही तो पड़ी थी मैं,उसके बेमतलब के गुस्से को हर बार माफी मांगने के लिए पीछे ही तो पड़ी थी,जल्दी में जब खाना खाना भूल जाता था,तब 10 बार फ़ोन करके याद दिलाने के लिए पीछे ही तो पड़ी थी।हाँ उसने कभी मुझसे ज्यादा बात नही कि, क्योंकि हर बात सुनी ही तो है मैंने, वो कहता रहा और मैं सुनती गई,हां उसने कभी बात नही की,क्योंकि वो कभी मेरी पसंद ना-पसन्द जानना ही नही चाहता था।सच ही तो कहा उसने,पर जानते हो तुम्हारे सच्चे शब्दो ने इतना नही तोड़ा जितना तुम्हारे झूठे प्यार ने तोड़ दिया।मैं सोच चुकी थी ,महसूस कर सकती थी तुम्हारे लिए मेरी नाराज़गी नफरत बन चुकी थी।और ये नफ़रत दिन भर दिन बढ़ती जाती है,बढ़ती जाती है।और अब तो इतनी नफ़रत है कि जुबान से जो तेरी अपना नाम सुनूँ तो सरेआम खुद को खाक कर दूं।ये सफर था अपनी मोहब्बत से नाराजगी का नफ़रत तक... #
सफऱ नाराज़गी से नफरत का
{पूरा पढे कैप्शन में} हाँ याद है मुझे को 31 दिसम्बर को तुमसे मासूम सी लड़ाई ओर झूठी नाराज़गी ताकि तुम मनाने आओ।दिन बीता,ओर फिर दिन बीते पर तुम्हारा कोई जवाब नही,ना ही कोई फ़ोन या मैसेज आया तुम्हारा।हैरान ओर बढ़ती बैचनी में ही मैंने तुम्हें फ़ोन किया।30 जनवरी सुबह 11 बजे कैसे हो तुम,हाँ मैं अच्छा हूँ कुछ काम है तो बोलो,मुझे लगा शायद नाराज़ है,पर नाराज़ तो मैं थी।ना ना जाना! काम नही था तुम्हे कोई फर्क नही पड़ा न हमने 1 महीना बात नही की।नही मैं बिजी था,अच्छा bye काम है।मुझे गुस्सा आया सोचा तुमसे बात नही करूँगी अब दिन बीत रहे थे,रातें रो रोकर कट रही थी।valentines day भी चला गया और दूरियां बढ़ती जा रही थी।27 फरवरी मेरा जन्मदिन था उस दिन सुबह से बस फ़ोन हाथ मे कहीँ तुम फोन करो और मैं उठा न सकी तो,गुस्सा भी तो बहुत आता है जनाब को,ढलते दिन के साथ चेहरा भी बुझ रहा था रात ठीक 9.07 मिनट पर तुम्हारा facebook पर नोटिफिकेशन आता है "HBD" पढ़कर दुख हुआ, बस इतनी सी जगह थी जिंदगी में कि तुम मेरे लिए कुछ ढंग के शब्द भी ना लिख पाए।सच्चाई से बेखबर मैं फैसला कर चुकी थी,अब तुमसे कोई रिश्ता नही होगा,सब खत्म।2 मार्च को एक दोस्त की id में उसके मैसेज पढ़कर पैरों तले जमीन निकल गई,ये इंसान इतना धोकेबाज़ है,मेरे साथ जो पल बिताए वो महज उसके लिए timepass था,वो मेरी दोस्त से अपनी एक सहेली से मिलने की मिन्नत कर रहा था,प्लीज मेरी प्रिया से बात करवा दो,मैं मर जाऊंगा उसके बिना,वो भी मुझसे बहुत प्यार करती है,हम शादी करने वाले है,उसके घरवाले मान नही रहे,तुम मदद करो।मेरी दोस्त ने कहा तुम प्रिया से प्यार करते हो तो निशा के साथ जो किया वो क्या था,जवाब आया कि निशा मेरे पीछे पड़ी है,मेरा उससे कोई नाता नही,मैंने तो कभी ज्यादा बात भी नही की उससे।और पढ़ते पढ़ते ,शायद मैं जितना रोई उसका हिसाब मैं शब्दो मे बयान भी न कर सकी।पीछे पड़ी थी,हाँ जब वो बीमार होता था उसकी देखभाल करने में पीछे ही तो पड़ी थी मैं,उसके बेमतलब के गुस्से को हर बार माफी मांगने के लिए पीछे ही तो पड़ी थी,जल्दी में जब खाना खाना भूल जाता था,तब 10 बार फ़ोन करके याद दिलाने के लिए पीछे ही तो पड़ी थी।हाँ उसने कभी मुझसे ज्यादा बात नही कि, क्योंकि हर बात सुनी ही तो है मैंने, वो कहता रहा और मैं सुनती गई,हां उसने कभी बात नही की,क्योंकि वो कभी मेरी पसंद ना-पसन्द जानना ही नही चाहता था।सच ही तो कहा उसने,पर जानते हो तुम्हारे सच्चे शब्दो ने इतना नही तोड़ा जितना तुम्हारे झूठे प्यार ने तोड़ दिया।मैं सोच चुकी थी ,महसूस कर सकती थी तुम्हारे लिए मेरी नाराज़गी नफरत बन चुकी थी।और ये नफ़रत दिन भर दिन बढ़ती जाती है,बढ़ती जाती है।और अब तो इतनी नफ़रत है कि जुबान से जो तेरी अपना नाम सुनूँ तो सरेआम खुद को खाक कर दूं।ये सफर था अपनी मोहब्बत से नाराजगी का नफ़रत तक... #
rajnibansal3714

Rajni Bansal

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हाँ याद है मुझे को 31 दिसम्बर को तुमसे मासूम सी लड़ाई ओर झूठी नाराज़गी ताकि तुम मनाने आओ।दिन बीता,ओर फिर दिन बीते पर तुम्हारा कोई जवाब नही,ना ही कोई फ़ोन या मैसेज आया तुम्हारा।हैरान ओर बढ़ती बैचनी में ही मैंने तुम्हें फ़ोन किया।30 जनवरी सुबह 11 बजे कैसे हो तुम,हाँ मैं अच्छा हूँ कुछ काम है तो बोलो,मुझे लगा शायद नाराज़ है,पर नाराज़ तो मैं थी।ना ना जाना! काम नही था तुम्हे कोई फर्क नही पड़ा न हमने 1 महीना बात नही की।नही मैं बिजी था,अच्छा bye काम है।मुझे गुस्सा आया सोचा तुमसे बात नही करूँगी अब दिन बीत रहे थे,रातें रो रोकर कट रही थी।valentines day भी चला गया और दूरियां बढ़ती जा रही थी।27 फरवरी मेरा जन्मदिन था उस दिन सुबह से बस फ़ोन हाथ मे कहीँ तुम फोन करो और मैं उठा न सकी तो,गुस्सा भी तो बहुत आता है जनाब को,ढलते दिन के साथ चेहरा भी बुझ रहा था रात ठीक 9.07 मिनट पर तुम्हारा facebook पर नोटिफिकेशन आता है "HBD" पढ़कर दुख हुआ, बस इतनी सी जगह थी जिंदगी में कि तुम मेरे लिए कुछ ढंग के शब्द भी ना लिख पाए।सच्चाई से बेखबर मैं फैसला कर चुकी थी,अब तुमसे कोई रिश्ता नही होगा,सब खत्म।2 मार्च को एक दोस्त की id में उसके मैसेज पढ़कर पैरों तले जमीन निकल गई,ये इंसान इतना धोकेबाज़ है,मेरे साथ जो पल बिताए वो महज उसके लिए timepass था,वो मेरी दोस्त से अपनी एक सहेली से मिलने की मिन्नत कर रहा था,प्लीज मेरी प्रिया से बात करवा दो,मैं मर जाऊंगा उसके बिना,वो भी मुझसे बहुत प्यार करती है,हम शादी करने वाले है,उसके घरवाले मान नही रहे,तुम मदद करो।मेरी दोस्त ने कहा तुम प्रिया से प्यार करते हो तो निशा के साथ जो किया वो क्या था,जवाब आया कि निशा मेरे पीछे पड़ी है,मेरा उससे कोई नाता नही,मैंने तो कभी ज्यादा बात भी नही की उससे।और पढ़ते पढ़ते ,शायद मैं जितना रोई उसका हिसाब मैं शब्दो मे बयान भी न कर सकी।पीछे पड़ी थी,हाँ जब वो बीमार होता था उसकी देखभाल करने में पीछे ही तो पड़ी थी मैं,उसके बेमतलब के गुस्से को हर बार माफी मांगने के लिए पीछे ही तो पड़ी थी,जल्दी में जब खाना खाना भूल जाता था,तब 10 बार फ़ोन करके याद दिलाने के लिए पीछे ही तो पड़ी थी।हाँ उसने कभी मुझसे ज्यादा बात नही कि, क्योंकि हर बात सुनी ही तो है मैंने, वो कहता रहा और मैं सुनती गई,हां उसने कभी बात नही की,क्योंकि वो कभी मेरी पसंद ना-पसन्द जानना ही नही चाहता था।सच ही तो कहा उसने,पर जानते हो तुम्हारे सच्चे शब्दो ने इतना नही तोड़ा जितना तुम्हारे झूठे प्यार ने तोड़ दिया।मैं सोच चुकी थी ,महसूस कर सकती थी तुम्हारे लिए मेरी नाराज़गी नफरत बन चुकी थी।और ये नफ़रत दिन भर दिन बढ़ती जाती है,बढ़ती जाती है।और अब तो इतनी नफ़रत है कि जुबान से जो तेरी अपना नाम सुनूँ तो सरेआम खुद को खाक कर दूं।ये सफर था अपनी मोहब्बत से नाराजगी का नफ़रत तक... # #story