हमराह बन हर नए पहलू से मैं और क़लम गुज़रतें हैं लफ़्ज़ नुमाईशी दर्द के या मोहब्बत के लिख देते हैं हर्फ़ में ख़ुदा की इबादत में सूफ़ियाना सफ़र करतें हैं हम परवदिगार की बरसती हुई रहमतें लिख देतें हैं तिलस्मी कहानियों के राज़ के कूचे में भी खो जातें हैं दुनिया में अतरंगी ख़्वाब बुनकर किस्से लिख देतें हैं ज़ुल्म देखकर इंक़लाबी आवाज़ में पर्चे भर देते हैं बाग़ी बन मज़मूँ भी सत्ता की गली के लिख देते हैं वतन की शान में एहसास गर्मजोशी से बयां कर देते हैं ममता के शुक्राना के लिए नज़्म सज्दे में लिख देते हैं इश्क़ फ़िज़ा में जब महके 'नेह' की मेंह में डूब जाते हैं बस साथ में मुलाकातों के अधूरे फ़साने लिख देते हैं। ♥️ मुख्य प्रतियोगिता-1001 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें! 😊 ♥️ दो विजेता होंगे और दोनों विजेताओं की रचनाओं को रोज़ बुके (Rose Bouquet) उपहार स्वरूप दिया जाएगा। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।