जब अपने छोटे से घर से निकलकर चल पड़ता हूँ जब बाजार की बड़ी बड़ी इमारतों पे नज़र पड़ती है तो मन मेरा खो जाता है उस बड़ी इमारत की दीवारों में ओर फिर अकेला महसूस कर मन भी उस इमारत से बाहर निकल आता है फिर बाजार से लौट कर घर वापस आता हूँ फिर बैठ जाता हूं फिर अपने घर के बारे में सोचता हूँ तो उस ईमारत का ख्याल मन मे नही आता क्यों कि सुकून मुझे मेरे दो कमरे वाले घर मे ही आता है चोटा है। उस ईमारत के आगे कुछ नही मगर मन मेरा मेरे दो कमरे वाले घर मे खोता नही #Home