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जब अपने छोटे से घर से निकलकर चल पड़ता हूँ जब बाजार

जब अपने छोटे से घर से निकलकर चल पड़ता हूँ
जब बाजार की बड़ी बड़ी इमारतों पे नज़र पड़ती है
तो मन मेरा खो जाता है उस बड़ी इमारत की दीवारों में
ओर फिर अकेला महसूस कर मन भी उस इमारत से 
बाहर निकल आता है
फिर बाजार से लौट कर घर वापस आता हूँ फिर बैठ जाता हूं
फिर अपने घर के बारे में सोचता हूँ
तो उस ईमारत का ख्याल मन मे नही आता
क्यों कि सुकून मुझे मेरे दो कमरे वाले घर मे ही आता है
चोटा है। उस ईमारत के आगे कुछ नही 
मगर 
मन मेरा मेरे दो कमरे वाले घर मे खोता नही #Home
जब अपने छोटे से घर से निकलकर चल पड़ता हूँ
जब बाजार की बड़ी बड़ी इमारतों पे नज़र पड़ती है
तो मन मेरा खो जाता है उस बड़ी इमारत की दीवारों में
ओर फिर अकेला महसूस कर मन भी उस इमारत से 
बाहर निकल आता है
फिर बाजार से लौट कर घर वापस आता हूँ फिर बैठ जाता हूं
फिर अपने घर के बारे में सोचता हूँ
तो उस ईमारत का ख्याल मन मे नही आता
क्यों कि सुकून मुझे मेरे दो कमरे वाले घर मे ही आता है
चोटा है। उस ईमारत के आगे कुछ नही 
मगर 
मन मेरा मेरे दो कमरे वाले घर मे खोता नही #Home