काश ऐसा होता कि बेटियाँ मोहताज़ न होतीं पिंजरों में दम न तोड़तीं रिश्ते वो हक से बनाती समझौते की बजाए पुरी आज़ादी से उड़तीं काश थोड़ी इंसानियत होती लाखों बच्चियाँ आज ज़िंदा होतीं जिन्हें मारकर हृदय ठंडा होता काश उन्हें भी ईश्वर का डर होता आँसू न छलके कभी हर सदस्य का ताप झेलतीं घर को घर बनाने वालीं दो रिश्तों को जोड़ने वालीं एक औरत तो एक बेटी ही है हर रोज़ कहीं त्याग तो कहीं समर्पण है फिर क्यों आज भी औरतों का जीवन नरक है स्वेक्षा से जीना चाहती हर आज नारी है मत तोलो उसे किसी तराज़ू में हर बेटी में कहीं 'देवी' आज बस्ती है। #girls_life