नव निर्माण और उन्नति का माध्यम ( कोराकाग़ज़ ) ---- स्वामी दयानंद सरस्वती विरजानन्द जी के आश्रम में पहुंचे और उनसे अपना शिष्य बनाने की विनती की तब विरजानन्द जी ने उनसे पूछा कि बेटा तुम क्या जानते हो आज तक कुछ पढा है क्या? तब स्वामी जी ने कहा कि मैंने बहुत सी पुस्तकों को पढ़ा है। यह सुनकर विरजानन्द जी बोले, ठीक है किताबें पढ़ीं हैं तो पर मैं तुम्हें अपना शिष्य नहीं बना सकता इसलिए तुम जा सकते हो। जब स्वामी दयानंद जी ने ये बात सुनी तो उनकी आँखों से आँसू निकलने लगे वे विनीत भाव में बोले गुरुजी मैं क्या करूँ जो आप का शिष्य हो सकूँ।तब विरजानन्द जी ने कहा कि अब तक जो कुछ भी तुमने अपने मन के काग़ज़ पे अंकित किया है उसे मिटा दे और इन किताबों की गठरी को यमुना जी में बहा दे तब मैं तुम्हें अपना शिष्य बनाऊँगा, तेरे मन में कुछ लिख पाऊँगा। कुछ स्पष्ट सुंदर और स्थाई लिखने के लिए "कोराकाग़ज़" होना बहुत जरूरी है। ( कैप्शन देखें ) कोराकाग़ज़ मानव जीवन से जुड़ा हुआ एक ऐसा उपागम है,जो कालक्रम की हर एक गतिविधि का साक्षी बनता है। श्रष्टि के आरंभ में श्रुतियों का लिपिबद्ध होकर वेदों के ज्ञान और विज्ञान से दुनिया को आलोकित करने का कार्य इसी से संभव हुआ। जीवन के शुरुआती दौर में अ से ज्ञ तक का सफ़र, भाषा और भावनाओं की लिखित अभिव्यक्ति, विचारों का फ़लक, कोराकाग़ज़ ही रहा। वक़्त बदला तो उसके साथ हर एक चीज में बदलाव आए।तकनीकी विकास ने यह सब एक नए रूप में हमारे सामने प्रस्तुत किया। यौरकोट ने शब्दों को ज़मीन दी तो लेखन खेती करने वाले लोग अपने भावों की फ़सल बोने लगे और उस फ़सल को पोषण देने का कार्य कोराकाग़ज़ मंच और उनकी समर्पित टीम ने किया। उनकी विशेषताओं को गिनाना तो संभव नहीं हैं लेकिन मैं कह सकता हूँ कि लेखन की हर एक शैली और विद्या को उन्हीने प्रोत्साहन दिया। वे समय समय पर विषयों की सुंदरता को ध्यान में रखकर कार्य किये, मस्ती की पाठशाला से टेंसन को दूर भगाया तो उर्दू की पाठशाला से भाषाओं का संगम कराते रहे। मेमे की दुनिया से गुदगुदाया, तो त्योहारों की बहार लाते रहे, अंताक्षरी के माध्यम से बढ़ाई शब्दों पर पकड़, मुहावरों वाली रचना दिखाती रही अकड़। सचमुच कोराकाग़ज़ ने एहसास दिलाया कि दो पंक्ति प्यार की लिखकर भी सुकून मिलता है। विशेषताओं में विशेष कोराकाग़ज़ नवनिर्माण और उन्नति का बेहतर माध्यम बनाया। हम यदि सूक्ष्म दृष्टि से विचार करते हैं तो पाते हैं कि 'कोराकाग़ज़' यौरकोट की आत्मा बन चुका है। श्रीमद्भागवत गीता के दूसरे अध्याय श्लोक ( 23 ) में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि- नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः। न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः।। अनुभव कहता है कि यह पूरी क़ायनात ख़ुदा के हाथों लिखी जाने वाली एक किताब है। हम जानते हैं कि हर एक किताब की इकाई कोराकाग़ज़ होता है।