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जीभ पर चिपुड़ता सौंधा फ्लेवर, सुबह की चाय का ओठों

जीभ पर चिपुड़ता 
सौंधा फ्लेवर, सुबह की चाय का
ओठों तक ढलक, 
यादों-सा
सारे आलम में बिखरता जाता
गरम चाय की प्याली-
ये तुम और मैं
चाय पर,
चाय के साथ, 
दो जने मिलकर
बतकही का सिलसिला रोजाना!
कमबख़्त! 
कब का बेमज़ा हो चुका ना?
जैसे,...ठंडी पड़ गई हो चाय, और
चेहरा चिंहुर कर एक घूँट में ही बेमन गटक जाने या
झटके में झुंझलाकर फेंक देने जैसा।
@manas_pratyay #alone #गरम_चाय_की_प्याली © Ratan Kumar
जीभ पर चिपुड़ता 
सौंधा फ्लेवर, सुबह की चाय का
ओठों तक ढलक, 
यादों-सा
सारे आलम में बिखरता जाता
गरम चाय की प्याली-
ये तुम और मैं
चाय पर,
चाय के साथ, 
दो जने मिलकर
बतकही का सिलसिला रोजाना!
कमबख़्त! 
कब का बेमज़ा हो चुका ना?
जैसे,...ठंडी पड़ गई हो चाय, और
चेहरा चिंहुर कर एक घूँट में ही बेमन गटक जाने या
झटके में झुंझलाकर फेंक देने जैसा।
@manas_pratyay #alone #गरम_चाय_की_प्याली © Ratan Kumar