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समय का खेल कह कर हम अपने कर्मों को नज़रअंदाज़ नही कर

समय का खेल कह कर हम अपने कर्मों को नज़रअंदाज़ नही कर सकते।
पहचाना हमे, यकायक सामने आये युवक ने एक मुस्कान के साथ हाथ जोड़ते हुए पूछा।
उस रौबीले को हम देख कर कुछ याद करते इस से पहले ही उसने कहा कि दस वर्ष पूर्व आपके यहाँ काम करता था। ओह सुरेश अब याद आया, अर्रे तुम्हारी तो काया कल्प हो गयी है।
आप के यहाँ से हम जिस साहब के पास गए उनकी कोई संतान नही थी और सारा व्यापार धीरे धीरे उन्होंने मुझे सौंप दिया और स्वयं तीर्थ यात्रओं पे रहते हैं।
हम आवाक़ खड़े सोच रहे थे दस वर्ष पूर्व का समय जब सुरेश ने हमसे अपने पिता के इलाज के लिए कुछ अग्रिम मांगा था जो हमने इनकार कर दिया था।
हम किसी अपराधी की भांति खड़े सोच रहे थे कि धरती खुले और हम को निगल ले। समय का खेल कह कर हम अपने कर्मों को नज़रअंदाज़ नही कर सकते।
पहचाना हमे, यकायक सामने आये युवक ने एक मुस्कान के साथ हाथ जोड़ते हुए पूछा।
उस रौबीले को हम देख कर कुछ याद करते इस से पहले ही उसने कहा कि दस वर्ष पूर्व आपके यहाँ काम करता था। ओह सुरेश अब याद आया, अर्रे तुम्हारी तो काया कल्प हो गयी है।
आप के यहाँ से हम जिस साहब के पास गए उनकी कोई संतान नही थी और सारा व्यापार धीरे धीरे उन्होंने मुझे सौंप दिया और स्वयं तीर्थ यात्रओं पे रहते हैं।
हम आवाक़ खड़े सोच रहे थे दस वर्ष पूर्व का समय जब सुरेश ने हमसे अपने पिता के इलाज के लिए कुछ अग्रिम मांगा था जो हमने इनकार कर दिया था।
हम किसी अपराधी की भांति खड़े सोच रहे थे कि धरती खुले और हम को निगल ले।

दस साल बाद मिलना होता है - दो लोगों का।
समय का खेल कह कर हम अपने कर्मों को नज़रअंदाज़ नही कर सकते।
पहचाना हमे, यकायक सामने आये युवक ने एक मुस्कान के साथ हाथ जोड़ते हुए पूछा।
उस रौबीले को हम देख कर कुछ याद करते इस से पहले ही उसने कहा कि दस वर्ष पूर्व आपके यहाँ काम करता था। ओह सुरेश अब याद आया, अर्रे तुम्हारी तो काया कल्प हो गयी है।
आप के यहाँ से हम जिस साहब के पास गए उनकी कोई संतान नही थी और सारा व्यापार धीरे धीरे उन्होंने मुझे सौंप दिया और स्वयं तीर्थ यात्रओं पे रहते हैं।
हम आवाक़ खड़े सोच रहे थे दस वर्ष पूर्व का समय जब सुरेश ने हमसे अपने पिता के इलाज के लिए कुछ अग्रिम मांगा था जो हमने इनकार कर दिया था।
हम किसी अपराधी की भांति खड़े सोच रहे थे कि धरती खुले और हम को निगल ले। समय का खेल कह कर हम अपने कर्मों को नज़रअंदाज़ नही कर सकते।
पहचाना हमे, यकायक सामने आये युवक ने एक मुस्कान के साथ हाथ जोड़ते हुए पूछा।
उस रौबीले को हम देख कर कुछ याद करते इस से पहले ही उसने कहा कि दस वर्ष पूर्व आपके यहाँ काम करता था। ओह सुरेश अब याद आया, अर्रे तुम्हारी तो काया कल्प हो गयी है।
आप के यहाँ से हम जिस साहब के पास गए उनकी कोई संतान नही थी और सारा व्यापार धीरे धीरे उन्होंने मुझे सौंप दिया और स्वयं तीर्थ यात्रओं पे रहते हैं।
हम आवाक़ खड़े सोच रहे थे दस वर्ष पूर्व का समय जब सुरेश ने हमसे अपने पिता के इलाज के लिए कुछ अग्रिम मांगा था जो हमने इनकार कर दिया था।
हम किसी अपराधी की भांति खड़े सोच रहे थे कि धरती खुले और हम को निगल ले।

दस साल बाद मिलना होता है - दो लोगों का।
anujjain6116

Anuj Jain

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