क्यों हर खुशी के पीछे थोड़ा दर्द है हर हँसीं के पीछे उदासी क्यों उजाले दिन के क्यों बदल जाते हैं धुंधलके में शाम के, बहारों को लगती है नज़र क्यों पतझड़ की खुशी मनाएं भी कैसे कि हर खुशी के पीछे लगा है दर्द हमजोली की तरह हमराह कहें कि हमसफ़र कि हँसीं और उदासी चलती है साथ साथ संग मेरे #ये_जो_ज़िन्दगी_की_किताब_है