तिरे रूप का छलावा आज हुआ क़ामयाब। इश्क़ में तिरे मेरा मस्कन भी हुआ बरबाद। खोया है होश उम्र भर के लिए तेरे प्यार में, मुझे मंज़ूर हुआ मेरी साँसों का क़त्लेआम। देखा था जो गुलशन असल में वीराना था। दुनिया से दूर कही तन्हा मेरा ठिकाना था। आँखें बंद करके जिस सफ़र पर निकला था, आज मेरा हर कदम मुझसे ही अनजाना था। रूप के इस छलावे में जाने क्या-क्या हार गया। ग़मगुसार था जो अपना, बेगाना बनके मार गया। मोहब्बत का हर लफ़्ज़ न जाने क्यों बेकार गया। तेरी जफ़ाओं में डूबा लम्हा मुझे करके बेज़ार गया। आज भी इस छलावे ने कितनो को बर्बाद किया। शायद ही कोई हो ऐसा जिसको इसने आबाद किया। चाहत रखते है आशिक़ इस चाहत में मिट जाने की, सब रोये हैं बिन आँसू और एक तुझे इसने शाद किया। ♥️ Challenge-818 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें। ♥️ अन्य नियम एवं निर्देशों के लिए पिन पोस्ट 📌 पढ़ें।